युग पुरुष श्याम बर्थवार

मनोरमा बर्थवार,

‘टूटा हुआ बोतल है, टूटा हुआ पैमाना, सरकार तुम्हें यह दिखला देंगे, ये ठाट फकीराना’ का उद्घोष करते हुए स्वतंत्राता संग्राम में शामिल गया के सपूत श्याम बर्थवार ऐसे बिरले स्वतंत्राता सेनानी थे, जिनका जन्म 15 अगस्त को हुआ और मौत भी आयी तो 26 जनवरी को। ऐसा ही युग पुरुष थे- महान क्रांतिकारी साम्यवाद व समाजवाद के विद्वान कुशल पत्रकार व व्यंग चित्रकार श्याम बर्थवार। औरंगाबाद जिला के ओबरा खरांटी ग्राम में पुलिस इन्सपेक्टर बद्री प्रसाद के घर 15 अगस्त 1901 को जन्म लिया और मौत भी आयी तो 26 जनवरी 1983 को गया के पितामहेश्वर मुहल्ले में। उन्हें अपने प्राण और परिवार से प्यारा था देश की आजादी। आदर्श, त्याग व बलिदान के प्रतिमूर्ति श्याम बर्थवार मैट्रिक की शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर 14 वर्ष की आयु में स्वतंत्राता संग्राम में कूद पड़े। महर्षि अरविन्द के आदर्श व व्यक्तित्व से प्रभावित हो क्रांतिकारी संगठनों में शामिल हो गये। पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार व बंगाल में क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। स्वतंत्राता संग्राम में काकोरी रेल डकैती काण्ड, बंगाल गवर्नर की हत्या, गया षडयंत्र, व लाहौर षडयंत्र में दोषी करार दिये गये। कालापानी सहित देश के विभिन्न जेलों में अपनी जवानी के 20 वर्ष गुजारे। विरह में पत्नी की मौत हुई। बाल-बच्चों का लालन-पालन व शिक्षा-दीक्षा ननिहाल में हुआ। फिर भी विचलित नहीं हुए। स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार से मिलने वाली सारी सुविधा व पेंशन यह कहकर ठुकरा दिया कि राजनीति मेरा पेशा नहीं, वरन देशभक्ति है। यहाँ तक की स्वतंत्रता प्राप्ती के बाद प्रधनमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने उन्हें सोवियत रुस का राजदूत बनाकर भेजने का प्रस्ताव रखा पर उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरु को पत्र लिखकर स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिस सोवियत रुस को आप साम्यवादी देश समझ बैठे हैं, वहाँ साम्यवाद आने में सौ साल से अधिक समय लगेगा। इसलिए मेरा वहाँ भेजे जाने का कोई तर्क नहीं रखता। देश की प्रधनमंत्री प्रियदर्शनी इन्दिरा गाँधी ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के अखिल भारतीय संगठन जिसका वे स्वयं अध्यक्ष थी और श्याम बर्थवार को उपाध्यक्ष बनाया था। स्वतंत्राता संग्राम में शहीदे आजम भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, बसावन सिंह, गोविन्द बल्लभ पन्त, सरदार बल्लभ भाई पटेल इनके करीबी व जीगरी दोस्त थे। 1962 में गया शहर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीते और उन्हें बिहार विधनसभा में जाने का गौरव प्राप्त हुआ।

श्याम बर्थवार बतलाते थे कि 1926 में क्रांतिकारी संगठनों का पड़ाव उत्तर प्रदेश के लखनऊ व बनारस में था। यहाँ से आसानी से पंजाब, बिहार व बंगाल के लोगों से सम्पर्क साधने में सहुलियत होती थी। इस बात की भनक ब्रिटिश सरकार को लग गयी। क्रांतिकारी संगठनों के बीच खुफिया विभाग के लोगों ने पैठ बना ली। एक-एक कर उनके साथी पकड़े जाने लगे। तब वहाँ से भागकर हमलोग गया जिला के एरु में डेरा डाला। हमारे साथ बंगाल के सूर्यसेन, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह सहित कई लोग आये। यहाँ आने पर उनका सम्पर्क डालमिया नगर में बसावन सिंह, डाल्टेनगंज में गणेश प्रसाद, गया में राधे मोहन प्रसाद, डाॅ. केशो प्रसाद, शत्रुधन शरण सिंह, विश्वनाथ माथुर, अच्युतानन्द प्रसाद, किसान सिंह, पंडित मोहनलाल महतो वियोगी, श्याम दत्त मिश्र से बढ़ा। उनके साथ मिलकर योजनाएं तैयार की जाने लगी। वजीरगंज के बाबू बाछो सिंह ने उनका बड़ा सहयोग किया। गया शहर से ‘चिनगारी’ साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया गया। बनारस के बद्री प्रसाद, पंडित मोहन लाल महतो वियोगी, श्यामदत्त मिश्र के सम्पादनत्व में इसकी प्रकाशन शुरु हुआ। अल्प अवधि में देश के कोने-कोने के अलावे विदेशों में भी इसकी प्रतियाँ भेजी जाने लगी। साथ-साथ क्रांतिकारी घटनाओं को भी अन्जाम दिया जाता रहा। गया का डाकघर लूटा गया। इम्पोरियम मेल ट्रेन को लूटा गया, डाल्टेनगंज काॅटन मिल का खजाना लूटा गया। बंगाल के गवर्नर की हत्या की गयी। इस बीच सी.आई.डी. इन्सपेक्टर आई.एस. गांगुली के रिपोर्ट के आधार पर इस पूरे प्रकाशन का गया षडयंत्र के रुप में करार दी गयी। श्याम बर्थवार को मुख्य अभियुक्त बनाया गया। बंगाल के सूर्यसेन, पंजाब के तीन, भारत नवजवान सभा के लोग, विश्वनाथ माथुर, शत्रुधन शरण सिंह, सहदेव सिंह सहित 17 लोगों को कालापानी की सजा दी गयी। चिनगारी जप्त कर ली गयी।

कालापानी से छूटकर आने के बाद पंजाब के भारत नौजवान सभा के कुछ लोगों के साथ श्याम बर्थवार को पुनः बन्दी बना लिया गया। इस बार उन्हें देवली जेल में रखा गया। जहाँ जयप्रकाश नारायण पहले से ही बन्दी थे। जयप्रकाश नारायण के साथ एक सेल में श्याम बर्थवार को रखा गया। प्रभावती जी प्रत्येक सप्ताह जे.पी. से मिलने आया करती थी। वह जयप्रकाश जी के लिए पुस्तक लाकर दिया करती थी। जिस पुस्तक के सौवें पन्ने पर जोड़ का निशान उसके जिल्द में जेल से बाहर चिट्ठी भेजी जाती थी। एक दिन जयप्रकाश जी ने महात्मा गांधी के नाम एक पत्र लिखा। लिखे गये इस पत्र में उन्होंने कहा था कि श्याम बर्थवार सहित भारत नौजवान सभा के लोग मेरे साथ हंै और बाहर में भी साथ देने का वादा किया है। देवली जेल गेट पर यह पत्र खुफिया विभाग के हाथों पकड़ी गयी। ब्रिटिश हुकूमत ने महात्मा गांध्ी को बदनाम करने के नीयत से सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाया। चूकि जयप्रकाश नारायण ने इस पत्र में लिखा था कि सत्याग्रह करने और आन्दोलन के लिए चन्दा मांगने से देश आजाद होने वाला नहीं। इसके लिए बैंक लूटना होगा। रेलवे लाईन कवाड़नी होगी। यह पत्र देवली दस्तावेज के नाम से मशहुर हुआ। पर जयप्रकाश नारायण और श्याम बर्थवार को देवली जेल से हटाकर केन्द्रीय कारागार हजारीबाग भेजा गया। संयोग से यहाँ भी दोनों को एक ही सेल में रखा गया। इस बात की जानकारी महात्मा गाँधी को मिल गयी कि दोनों एक साथ रह रहे हैं। महात्मा गाँधी ने जयप्रकाश नारायण के नाम एक पत्र लिखा और कहा कि तुम ऐसे व्यक्ति के साथ रह रहे हो कि वह तुम्हारा व्यक्तित्व बदल डालेगा। जयप्रकाश जी इस पत्र का संज्ञान नहीं लिया। हजारीबाग जेल से भागने की योजना तैयार कर ली। उन दिनों रामबृक्ष बेनीपुरी हजारीबाग जेल में बन्द थे। उन्होंने ‘आयी दिवाली सजनी रे’ नाटक लिखी। श्याम बर्थवार बुट पालिश चूना। हल्दी के मिश्रण से रंग तैयार कर ड्रामा का पर्दा जेल से मिलने वाली चादर पर तैयार की गयी। दीपावली के दिन नाटक का मंचन हजारीबाग जेल के चहारदिवारी के अन्दर शुरु हुई। जेल अधिकारी व पुलिस नाटक देखने में मशगुल हुए। इस बीच कई धोतियों को जोड़कर जयप्रकाश नारायण सहित पांच लोग जेल की चहारदीवारी फानकर भागे। गया में क्रांतिकारियों के ठिकानों पर हथियारों से लैश हुए। उन्हे बैलगाड़ी पर सुलाकर बिसार तालाब के रास्ते रफीगंज ले जाया गया। वहां से बनारस के लिए प्रस्थान कर गये।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद श्याम बर्थवार सीमान्त गाँधी से मिलकर कौमी खिदमतगार संस्था चलाने के साथ पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन व सम्पादन शुरु की। लोकमंच, गरीब, साप्ताहिक पत्रिका की शुरुआत की। कौमी खिदमतगार से लोग जुड़ने लगे। संगठन का विस्तार तेजी से होने लगा। बिहार सरकार चिन्तित हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्राी अनुग्रह नारायण सिंह ने जयप्रकाश नारायण को श्याम बर्थवार के पास भेजा कि वे इस संस्था को बन्द कर डाले। जयप्रकाश नारायण श्याम बर्थवार से मिलकर बिहार को माॅडल स्टेट बनाने की बात रखी और कौमी खिदमतगार संस्था को बन्द करने को कहा। वे राजी हो गये और वे इस संस्था को बन्द कर डाली। 1957 में गया संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े पर वे हार गये। 1962 गया विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़े पर इस बार वे चुनाव जीत गये।

संदर्भः- यात्रा 2010 मनोरमा बर्थवार,