टिल्हा धर्मशाला के सौ साल

अरुण चैरसिया
Tilha Dharamshala Gaya

गया में एक से बढ़कर एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर हैं। इन्हीं धरोहरों में से एक है राय सूरजमल बहादुर धर्मशाला, जो कि टिल्हा धर्मशाला के नाम से विख्यात है। राजस्थानी निर्माण शैली में निर्मित इस धर्मशाला का निर्माण 1909 ईस्वी में की गयी थी। इसके निर्माण में चिड़वा इलाका स्थित रवेतड़ी राजपुताना निवासी सेठ रामचरणदास जी के पौत्र एवं प्रपौत्र तुगनरामजी के पुत्र और राय सूरजमल प्रसाद झुनझुनवाला बहादुर ने मुख्य भूमिका निभायी थी। इस धर्मशाला का उद्घाटन बंगाल के तत्कालीन गवर्नर लार्ड वाकर ने किया था।

ऐसी मान्यता है कि सूरजमल ने पूरे देश में कई धर्मशालाओं का निर्माण कराया था, जिसमें बिहार में चार, बंगाल में दो, उत्तर प्रदेश में दो, आंध्र प्रदेश में दो धर्मशालाएं है और ये सारे धर्मशालाएं लगभग एक ही समय में बनायी गयी है।

गया में निर्मित टिल्हा ध्र्मशाला स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है, जो आम लोगों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता हैं। इसके निर्माण में चुनार के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया हैं। यह ध्र्मशाला तीन मंजिला है, जिनमें नीचे 41, मध्य में 25 और उपर 11 कमरे निर्मित हैं। यहाँ रहने वालों के खाने-पीने के लिए एक रसोईघर बना हुआ है। इस धर्मशाला के बीच में आंगन है ओर इसके दक्षिणी हिस्सा में कुल 14 कमरे हैं, जिसे कोठी कहा जाता है। इस कोठी में पहले धर्मशाला के मालिक यदा-कदा आकर निवास करते थे।

इस धर्मशाला का निर्माण मुख्य रुप से दूर-देश से आने वाले पिंडदानियों के लिए किया गया था। इसका प्रमाण धर्मशाला के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमरी प्लेट में लगे उस इश्तेहार को माना जा सकता है, जिसमें यह स्पष्ट उल्लेख हे कि कोई भी पिंडदानी बगैर कोई शुल्क दिए 20 दिनों तक लगातार निवास कर सकता है। इस धर्मशाला के निर्माण के सौ साल पूरे हो चुके हैं और एक अनुमान के मुताबिक लाखों पिंडदानियों ने इससे लाभ उठाया है। पितृपक्ष मेला के दौरान हरेक साल यह धर्मशाला यात्रियों से गुलजार रहता है। अपने निर्माण के 100 साल पूरा करने के बाद यह धर्मशाला कई जगह मरम्मती महसूस कर रहा है। अगर समय रहते इसकी मरम्मती करा दी जाती है तो यह गया के अमूल्य धरोहर के रुप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहेगी।

संदर्भः- यात्रा 2010 अरुण चैरसिया