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आजादी की लड़ाई में भारत माता के जिन सपूतों ने अपना हाथ बंटाया, उनमें जगलाल महतो का नाम भी पहली पंक्ति में शामिल है। इनका जन्म 4 जुलाई 1905 को गया जिले के इमामगंज प्रखण्ड के करमौन गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम रामधन और माता के नाम विलासी देवी था। इनकी पत्नी का नाम श्रीमती चन्द्रावती देवी तथा इनके तीन पुत्रों का नाम राजेन्द्र प्रसाद, अशोक कुमार सिंह आौर पवन कुमार है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा मैगरा में हुई। वे बड़ा होकर शिक्षक बनना चाहते थे।
1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रौलट एक्ट लाया। पूरे देश में रौलट एक्ट के खिलाफ आग भड़क उठी। 6 अप्रैल 1919 को महतो जी भी इस आन्दोलन में कूद पड़े। 1920 में गाँधी ने असहयोग आन्दोलन का बिगुल फूंका। महतो जी अपने साथियों के साथ आन्दोलन का झण्डा थाम लिया। असहयोग आन्दोलन की समाप्ति के बाद जगलाल महतो ने मिडिल भर्नाकुलर गुरु ट्रेनिंग स्कूल, नवादा से 1923 में एम.भी.जी.टी. की परीक्षा पास कर 1924 में इमामगंज अपर प्राइमरी स्कूल में शिक्षक पद पर नियुक्त हुए। बाद में महतो जी नौकरी से इस्तीफा देकर रंगलाल हाई स्कूल शेरघाटी में नाम लिखवाया और छुट्टी के दिनों में गाँवों में घुम-घुमकर राजनीतिक व सामाजिक गोष्ठियाँ करते रहे। उन्होंने 1929 ई. में शेरघाटी में सरदार बल्लभ भाई पटेल का भाषण सुना और वे उनके अनुयायी हो गए। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह ने देश को झकझोरा। महतो जी स्वयं जोशीले गीत गा-गाकर लोगों को जगाते रहे। 1933 ई. में इन्हें बिहार प्रांतीय हरिजन सेवक संघ का अध्यक्ष चुना गया था।
1934 ई. में बिहार में भयंकर भूकंप आया। 1934 ई. में रानीगंज में डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद का महतो जी ने पदार्पण करवाया और भूकंप पीडि़तों के लिए धन संग्रह किया। वर्ष 1935 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महतो जी अपने साथियों के साथ पैदल कलकत्ता गए। 1937 ई. में बिहार में चुनाव होने वाला था। महतो जी ने 1936 ई. में शेरघाटी में श्री जवाहर लाल नेहरु, जयप्रकाश नारायण, अब्दुल गफ्फार खां, प्रो. एन.जी. रंगा आदि को बुलाकर चुनावी सभा करवाया। 1939 ई. में गया डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चुनाव में महतो जी गया लोकल बोर्ड के चेयर मैन चुने गए। 4-5 अप्रैल 1942 ई. को शेरघाटी में बिहार प्रांतीय किसान सम्मेलन का 9वां अधिवेशन महतो जी ने करवाया, जिसकी अध्यक्षता स्वयं सहजानन्द सरस्वती ने किया, जिसमें प्रो. एन.जी. रंगा, पं. यदुनन्दन शर्मा, डाॅ. राधाकृष्ण सिंह आदि आये थे। 09 अगस्त 1942 को सारे देश में ‘करो या मरो’ तथा ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद हुआ। कांग्रेस के लगभग सारे बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए। जगलाल महतो के बड़े भाई पुलिस के हत्थे चढ़ गए। महतो जी भाग गए। पुलिस ने उनका घर ढ़ाह दिया। महतो जी डुमरिया, मनातू, हंटरगंज होते कोलकात्ता के रास्ते पुरी पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपना नाम हरिजी शास्त्री रखा और इसी नाम में उन्होंने पुरी में उत्कल हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना कर उसका संचालन करने लगे। बिहार, उड़ीसा व भारत सरकार की पुलिस को यह पता नहीं चल सका कि हरिजी शास्त्री ही जगलाल महतो हैं। 1944 में गाँधी जी के निर्देश पर महतो जी ने गिरफ्तारी दी और उन्हें गया सेन्ट्रल जेल लाया गया। इस बीच उन्होंने विद्यापीठ के संचालन की जिम्मेवारी कोंच प्रखण्ड के पाली गाँव निवासी रामवरन सिंह पर सांैपी। 1945 ई. में वे गया सेन्ट्रल जेल से रिहा हुए। उनके कामों से प्रभावित होकर उन्हें 1947 में गया जिला कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष बना दिया गया। 15 अगस्त 1947 को उन्होंने राजेन्द्र आश्रम गया में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। उस समय नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद जिला पुराना गया जिला में शामिल था। 1952 ई. के प्रथम आम चुनाव में जगलाल महतो इमामगंज विधानसभा जिसमें शेरघाटी व बाराचट्टी भी शामिल था से पहले विधायक चुने गए। उन्होंने अपने कार्यकाल में ईमानदारी व निष्ठा से कार्य किया। सड़क, सिंचाई के साथ-साथ सैंकड़ों प्राथमिक और अपर प्राइमरी विद्यालयों की स्थापना करवाई। बाद के दिनों में जगलाल महतो का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता गया। उन्हें टाटा नगर अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन वे चंगा नहीं हो सके और 17 सितम्बर 1963 को उनका उसी अस्पताल में निधन हो गया।