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बिहार की सर्वमान्य तीर्थ नगरी ‘गया’ के रत्नगर्भा भूमि में प्राचीन सभ्यता संस्कृति के कितने ही स्थल सुशोभित हैं जिनका अपना इतिहास रहा है। इसी में एक है अवशेषों से समृद्ध ‘‘कुर्किहार गढ़’’ धार्मिक आस्था का केन्द्र व बेशकीमती अवशेषों को अपने गर्भ में समेटे है।
गया जिले के वजीरगंज प्रखंड का कुर्किहार एक पौराणिक गांव है। बौद्ध व सनातन धर्म से जुड़े प्राचीन व दुलर्भ कलाकृतियां कुर्किहार गढ़ के भूगर्भ मे दबी पड़ी है। कुर्किहार गढ में बौद्ध कालीन सभ्यता एवं महाभारत काल की सभ्यता दबी पड़ी है। अनूठे मूर्तिशिल्प और विरासत में प्राप्त अनेकोनेक बेशकीमती पुरावशेषों को अपने गर्भ मंे संजोये कुर्किहार इतिहास, पुरातत्व व बौद्ध धर्म व हिन्दू धर्म से सरोकार रखनेवाले लोगों तथा पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। खुदाई के दौरान यहां से बड़े पैमाने पर मिली अष्ट धातु एवं पत्थरों की मूूर्तियां भगवान बुद्ध से जुड़ी है इसके अलावे बड़ी संख्या में पत्थर की हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मिली है। जिसे ग्रामीणों ने मंदिर बनाकर संग्रह कर रखा है। ये मूर्तियां काले बैसाल्ट पत्थर की है। कुछ मूर्तियां गढ़ के आसपास खेतों में हल जोतने के दौरान मिली है। अभी भी बड़ी संख्या में मूर्तियां लावारिस हालत में गांव में इधर उधर पड़ी हुई है। कुछ मूर्तियांे के अवशेष देखरेख के अभाव में बेकार होते जा रहे हैं। इस गांव का ऐसा कोई घर नहीं जहां पुरावशेषों से कोई कार्य न होता हो। आज यहां गाय-बैल बांधने से लेकर मसाला पीसने, घर की दीवार-चैखट तक में पुरावशेषों का इस्तेमाल हो रहा है।
प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण प्राचीनकाल में कुर्किहार बौद्ध भिक्षुओं एवं साधुओं का साधना केन्द्र था। बौद्ध धर्म गं्रथों के अनुसार गौतम बुद्ध ने कुर्किहार में कुछ दिनों तक रहकर बौद्ध धर्म का संदेश दिया था। सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा लंका से बौद्ध धर्म का प्रचार कर लौटने के बाद कुर्किहार गयी थी। उन्हांेने लंका के राजा मेघवर्ण के सहयोग से मुर्ति के कुशल कारीगरों को कुर्किहार लाकर बड़े पैमाने पर बुद्ध की मूर्तियां तैयार करवायी थी। बौद्ध भिक्षुओं ने कुर्किहार में रहकर बौद्ध धर्म का सघन प्रचार किया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान ने अपने यात्रा वृतांत में कुर्किहार का वर्णन किया है। कुर्किहार का पौराणिक नाम कुकुटबिहार और कुंडिलपुर था।
1847 ई. के मध्य में अंग्रेज जनरल किट्टो ने अपनी यात्रा के दौरान कुर्किहार में कई अवशेष प्राप्त किये थे। जनरल किट्टो ने कुर्किहार से दस बैलगाडि़यों पर भरकर प्राचीन मूर्तियां ले गये थे। 1872 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के इतिहासकार ब्राउल्ट के सर्वेक्षण विवरण ने कुर्किहार में उत्खनन का मार्ग प्रशस्त किया। 1930 ई. में डा. ग्रियसन के भ्रमण के दौरान 26 अष्टधातुओं की मूर्तियां के साथ पत्थर की अन्य मूर्तियों का विशाल भंडार मिला। यहां से अष्ट धातुओं व पत्थर की मूर्तियां ब्रिटिश संग्रहालय लंदन, राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली, नेशनल म्यूजियम कोलकाता, प्रिंस आॅफ वेल्स संग्रहालय मुम्बई, पटना, नवादा, गया म्यूजियम सहित कई संग्रहालय मंे है।
श्री मद्भागवत, सूरसागर आदि धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कुर्किहार वही पवित्र पर्यटन स्थल है जहंा महासुन्दरी रूक्मिणी श्रीकृष्ण की धर्मपत्नी बनी। भगवान श्रीकृष्ण ने रूक्मिणी को कुर्किहार से ही हरण कर ले गये थे। गांव वाले खुदाई से निकली देवी की प्रतिमा के साथ भगवान बुद्ध की प्रतिमा की भी पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
पुरातत्व विभाग ने 1933 ई. में कुर्किहार की खुदाई पर रोक लगा दी है। बावजूद बिहार सरकार तथा पर्यटन विभाग की उपेक्षा के कारण कुर्किहार गढ़ का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। गढ़ में मौजूद दुलर्भ प्राचीन मूर्तियांे की तस्करी हो रही है। सरकार तथा विभाग दुलर्भ बहुमूल्य मूर्तियांे की सुरक्षा के लिए कुर्किहार में ही संग्रहालय तथा पयर्टन केन्द्र स्थापित नहीं की गयी है। सरकार एवं विभाग के उपेक्षा के कारण जल्द ही पुरातात्विक स्थान कुर्किहार गढ़ में छिपी बहुमूल्य मूर्तियों का खजाना तस्करों के माध्यम से विदेश चला जायगा। साथ ही साथ बौद्धों एवं हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता का नमूना समाप्त हो जायेगा।
कुर्किहार गढ़ को विकसित करने के लिए केन्द्रीय मंत्रालय ने ‘भीलेज टूरिज्म’ के तहत पचास लाख रूपये का आवंटन दिया है। केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय के संयुक्त सचिव के अर्द्ध सरकारी पत्रांक एस/पी एण्ड सी दिनांक 07.04.05 द्वारा तत्कालीन जिलाधिकारी चैतन्य प्रसाद को कुर्किहार को पर्यटन क्षेत्र के रूप में प्राक्कलन बनाने का निर्र्देश दिया गया था। जिलाधिकारी चैतन्य प्रसाद ने 50 लाख की सीमा राशि के अन्तर्गत पर्यटन विकास संबंधी परियोजना तैयार करने का निर्देश कार्यपालक अभियंता को दिया था लेकिन आज तक कार्य प्रारंभ ही नहीं किया गया है। इतना ही नहीं कुर्किहार की उपयोगिता को देखते हुए राष्ट्रपति कलाम ने ऐतिहासिक क्षेत्र कुर्किहार में बौद्ध महोत्सव मनाने के लिए सरकार को पत्र लिखा था। राष्ट्रपति के आदेश निर्गत होने पर स्थानीय लोगों को लगा कि कुर्किहार गढ़ के गर्भ में छिपे इतिहास से पर्दा उठेगा लेकिन नतीजा आज तक शिफर है। कुर्किहार के विकास की बाट गांव वालेे भी जोह रहे हैं। वे सपने देख रहे हैं कि कभी न कभी ‘कुर्किहार’ के साथ-साथ गांव की भी किस्मत बदलेगी।